मन निर्मल दर्पण की भांति है सुख शांति। मन सागर पीड़ा गोताखोर लाई कविता। मन निर्मल दर्पण की भांति है सुख शांति। मन सागर पीड़ा गोताखोर ...
गंगाजल सा निर्मल मेरा मन है। गंगाजल सा निर्मल मेरा मन है।
जो निकले इसमें आगे वही दे धर्म का दान। जो निकले इसमें आगे वही दे धर्म का दान।
सबसे बडा प्रदूषण तो मन में इसलिए मन में झांकों... भीतर से निर्विकार हो तब परमपुरुष के सामने नमन करो.... सबसे बडा प्रदूषण तो मन में इसलिए मन में झांकों... भीतर से निर्विकार हो तब परमपुर...
इतनी शक्ति और देना छल, दम्भ, झूठ से दूर रखना ईर्ष्या, द्वेष न कभी छू पाए मेरा मन इतना निर्मल हो... इतनी शक्ति और देना छल, दम्भ, झूठ से दूर रखना ईर्ष्या, द्वेष न कभी छू पाए मे...
तन को सब धोवत हैं मन को धो सके ना कोय। तन को सब धोवत हैं मन को धो सके ना कोय।